आ रही रवि की सवारी! नव किरण का रथ सजा है, कलि-कुसुम से पथ सजा है , बादलों से अनुचरों ने स्वर्ण पोशाक धारी आ रही रवि की सवारी! विहग बंदी और चारण, गा रहे हैं कीर्ति गायन, छोड़कर मैदान भागी तारकों की फौज सारी! आ रही रवि की सवारी! चाहता,उछलूँ विजय कह, पर देखकर ठिठकता यह, रात का राजा खडा़ है राह में बनकर भिखारी! आ रही रवि की सवारी! -हरिवंश राय बचन
Poems & stories by PoemLara
Comments
Post a Comment