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आ रही रवि की सवारी कविता

   

                         आ रही रवि की सवारी!

नव किरण का रथ सजा है, 
कलि-कुसुम से पथ सजा है ,
बादलों से अनुचरों ने स्वर्ण  पोशाक धारी
आ रही रवि की सवारी!

विहग बंदी और चारण,
गा रहे हैं कीर्ति  गायन,
छोड़कर मैदान भागी तारकों की फौज सारी!
आ रही रवि की सवारी!

चाहता,उछलूँ विजय कह,
पर देखकर ठिठकता यह,
रात का राजा खडा़ है राह में बनकर भिखारी!
आ रही रवि की सवारी!
-हरिवंश राय बचन

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